बात बस इतनी सी थी कि चप्पल बगल में दाबे आधी रात को हम अपने ही घर में घुसने की कोशिश में थे| दरवाज़े में सोये एक आवारा कुत्ते की पूंछ पर हमारा पैर धीरे से पड़ गया| पूंछ पर गुदगुदी हुई और बेचारे कुत्ते की हंसी निकल गयी| उधर कुत्ते की पूँछ को सांप समझ कर हम घबराए जोर से चिल्लाये| कुत्ता लालू स्टाइल में बोला "अब इन का कौन समझाए" | हम सर पर पैर रख कर भागे कुत्ता भी हमें वस्तुस्थिति से अवगत करवाने की धुन में हमारे पीछे भागा | हम चुपचाप आगे भाग रहे थे और बह रुको-रुको कहते मनारे पीछे| मोहल्ले के कुत्ते उसकी मदद करने आ गए हम इतने बड़े कुक्कुर समुदाय को देखकर घबरा गए| पूरे मोहल्ले का चक्कर लगाकर जैसे ही हम अपने घर के आगे आये जोर से जय बजरंग बलि चिल्लाये और एक ही छलांग में अपने से भी ऊंची दीवार फांद गए अन्दर पहुंचकर हमें अपनी ताकत पर हैरानी हुई हम अपने आपको सुपर हीरो दिखाए दे रहे थे कुत्ते बाहर से हमें इस कारनामे पर बधाई दे रहे थे तभी हमारे ऊपर कहीं से एक मोटा कम्बल आन पड़ा कम्पल के बाहर से किसी ने एक जोरदार घूँसा जड़ा हम पहचान गए ये हमारी धर्मपत्नी थी लेकिन वोह हमें नहीं पहचान पाई जोर-जोर से चोर चोर चिल्लाई पडोसी पल भर में जाने कहाँ से आ गयी और कम्बल में लिपटे मुझ मासूम पर न जाने कितने लात घूंसे बरसा गए मार मार के मेरा कीमा बना दिया और बात बस इतनी थी कि हमारे पैर ने कुत्ते की पूँछ को गुदगुदा दिया पेट |
Wednesday, July 14, 2010
बात बस इतनी सी थी
Sunday, March 7, 2010
फ़ैशनेबल शहर की दिल को चुराती औरतें - महिला दिवस पर
ग़ज़ल
देखा करता हूँ सड़क पर आती जाती औरतें
फ़ैशनेबल शहर की दिल को चुराती औरतें
अपने शौहर से न जाने क्यों रहें नाराज़ ये
दूसरे मर्दों से मिलते मुस्कुराती औरतें
चाट का ठेला लगाना चाहता हूँ मैं भी अब
चाट पर रहती हैं हरदम भिनभिनाती औरतें
मैं भी क्रिकेट खेलता तो हूँ गली की टीम में
मेरे पीछे क्यों नहीं चक्कर लगाती औरतें
रात दिन इमरान* जो अमृत गटागट पी रहा
हमको भी ऐ काश बो अमृत पिलाती औरतें
( श्री श्री इमरान हाशमी जी महाराज)
बाद शादी के
न जाने क्या हुआ हैपेट को
खाब में
आ-आ के उसको हैं डरातीऔरतें
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ग़ज़ल
सेंक रही है नारी आँखें
ग़ज़ल
पिचके गाल सुपारी आँखें
बंद पड़ी सरकारी आँखें
मुश्क़िल से खुलती हैं प्यारे
नींद से बोझल भारी आँखें
जेब चीरती दिल तक पहुँचें
बाबू की दोधारी आँखें
साहब घूरें तो झुक जाएं
जनता की बेचारी आँखें
अपना दिल तो काँप उठता है
करें हुकम जब जारी आँखें
अंग दिखाता नर बेचारा
सेंक रही है नारी आँखें
हर दफ़्तर में दिख जाती हैं
कड़वी आँखें खारी आँखें
अब पेड़ों पर उगा करेंगी
बेचेंगे व्योपारी आँखें
जेब के पैसे गिन लेती हैं
उन की कारोबारी आँखें
पेट है हीरो पेट पे यारो
दुनिया की बलिहारी आँखें
पिचके गाल सुपारी आँखें
बंद पड़ी सरकारी आँखें
मुश्क़िल से खुलती हैं प्यारे
नींद से बोझल भारी आँखें
जेब चीरती दिल तक पहुँचें
बाबू की दोधारी आँखें
साहब घूरें तो झुक जाएं
जनता की बेचारी आँखें
अपना दिल तो काँप उठता है
करें हुकम जब जारी आँखें
अंग दिखाता नर बेचारा
सेंक रही है नारी आँखें
हर दफ़्तर में दिख जाती हैं
कड़वी आँखें खारी आँखें
अब पेड़ों पर उगा करेंगी
बेचेंगे व्योपारी आँखें
जेब के पैसे गिन लेती हैं
उन की कारोबारी आँखें
पेट है हीरो पेट पे यारो
दुनिया की बलिहारी आँखें
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ग़ज़ल
है अज़ल ही से जहां में हुकुमरानी पेट की
ग़ज़ल
याद आयेगी तुम्हे इक दिन कहानी पेट की
सिर धुनोगे तुम की क्यों मैंने न मानी पेट की
साथ इक दिन छोड़ देंगे जब तुम्हारे हाथ पैर
तब बहुत याद आएगी तुमको जवानी पेट की
जिस जुबां से रात दिन देते हो गाली पेट को
उस जुबां को काट लेगी बेज़ुबानी पेट की
हाथ पैरों को जुबां को सिर को सीने को जनाब
पेट ज़िंदा रख रहा है मेहरबानी पेट की
जो भी कुछ आंखों को दिखता है वो सब हो पेट में
पूरी होती ही नही हसरत पुरानी पेट की
कष्ट ही पाया है जिसने दिल दुखाया पेट का
मौज उसने की है जिसने बात मानी पेट की
पेट ही से चल रहा है वक्त का सारा निजाम
है अज़ल ही से जहां में हुकुमरानी पेट की
याद आयेगी तुम्हे इक दिन कहानी पेट की
सिर धुनोगे तुम की क्यों मैंने न मानी पेट की
साथ इक दिन छोड़ देंगे जब तुम्हारे हाथ पैर
तब बहुत याद आएगी तुमको जवानी पेट की
जिस जुबां से रात दिन देते हो गाली पेट को
उस जुबां को काट लेगी बेज़ुबानी पेट की
हाथ पैरों को जुबां को सिर को सीने को जनाब
पेट ज़िंदा रख रहा है मेहरबानी पेट की
जो भी कुछ आंखों को दिखता है वो सब हो पेट में
पूरी होती ही नही हसरत पुरानी पेट की
कष्ट ही पाया है जिसने दिल दुखाया पेट का
मौज उसने की है जिसने बात मानी पेट की
पेट ही से चल रहा है वक्त का सारा निजाम
है अज़ल ही से जहां में हुकुमरानी पेट की
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Friday, February 26, 2010
दिल बेचते हैं आँख नाक कान बेचते हैं
ग़ज़ल
दिल बेचते हैं आँख नाक कान बेचते हैं
पैसा मिले तो पूरा इंसान बेचते हैं
जोरों पे चल रहा है धंदा हमारा यारो
कवियों को आजकल हम सम्मान बेचते हैं
चड्डी से चाँद तक भी, जो चाहिए खरीदो
किश्तों में आजकल हर सामान बेचते हैं
हम बेचना भी चाहें बिकता ही नही अब ये
सस्ते में जब से नेता ईमान बेचते हैं
गाड़ी खरीदनी है अब चार पहियों वाली
आओ की बज़ुर्गों का खलियान बेचते हैं
दादी के ख़ास नुस्खे नानी की कहानी तक
हमको वो हमारा ही सामान बेचते हैं
हम से ही ठग के खाना आँखें हमे दिखाना
वल्लाह इस अदा पर हम जान बेचते हैं
चूना लगा के उस को कत्थे से ढक दिया है
हम शेर कह रहे हैं या पान बेचते हैं
ऐ पेट तुमसे बढ के बेशर्म हैं ये नेता
अपने वतन की आन बाण शान बेचते हैं
दिल बेचते हैं आँख नाक कान बेचते हैं
पैसा मिले तो पूरा इंसान बेचते हैं
जोरों पे चल रहा है धंदा हमारा यारो
कवियों को आजकल हम सम्मान बेचते हैं
चड्डी से चाँद तक भी, जो चाहिए खरीदो
किश्तों में आजकल हर सामान बेचते हैं
हम बेचना भी चाहें बिकता ही नही अब ये
सस्ते में जब से नेता ईमान बेचते हैं
गाड़ी खरीदनी है अब चार पहियों वाली
आओ की बज़ुर्गों का खलियान बेचते हैं
दादी के ख़ास नुस्खे नानी की कहानी तक
हमको वो हमारा ही सामान बेचते हैं
हम से ही ठग के खाना आँखें हमे दिखाना
वल्लाह इस अदा पर हम जान बेचते हैं
चूना लगा के उस को कत्थे से ढक दिया है
हम शेर कह रहे हैं या पान बेचते हैं
ऐ पेट तुमसे बढ के बेशर्म हैं ये नेता
अपने वतन की आन बाण शान बेचते हैं
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