ग़ज़ल
दिल बेचते हैं आँख नाक कान बेचते हैं
पैसा मिले तो पूरा इंसान बेचते हैं
जोरों पे चल रहा है धंदा हमारा यारो
कवियों को आजकल हम सम्मान बेचते हैं
चड्डी से चाँद तक भी, जो चाहिए खरीदो
किश्तों में आजकल हर सामान बेचते हैं
हम बेचना भी चाहें बिकता ही नही अब ये
सस्ते में जब से नेता ईमान बेचते हैं
गाड़ी खरीदनी है अब चार पहियों वाली
आओ की बज़ुर्गों का खलियान बेचते हैं
दादी के ख़ास नुस्खे नानी की कहानी तक
हमको वो हमारा ही सामान बेचते हैं
हम से ही ठग के खाना आँखें हमे दिखाना
वल्लाह इस अदा पर हम जान बेचते हैं
चूना लगा के उस को कत्थे से ढक दिया है
हम शेर कह रहे हैं या पान बेचते हैं
ऐ पेट तुमसे बढ के बेशर्म हैं ये नेता
अपने वतन की आन बाण शान बेचते हैं
Friday, February 26, 2010
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