Friday, February 26, 2010

दिल बेचते हैं आँख नाक कान बेचते हैं

ग़ज़ल

दिल बेचते हैं आँख नाक कान बेचते हैं
पैसा मिले तो पूरा इंसान बेचते हैं

जोरों पे चल रहा है धंदा हमारा यारो
कवियों को आजकल हम सम्मान बेचते हैं

चड्डी से चाँद तक भी, जो चाहिए खरीदो
किश्तों में आजकल हर सामान बेचते हैं

हम बेचना भी चाहें बिकता ही नही अब ये
सस्ते में जब से नेता ईमान बेचते हैं

गाड़ी खरीदनी है अब चार पहियों वाली
आओ की बज़ुर्गों का खलियान बेचते हैं

दादी के ख़ास नुस्खे नानी की कहानी तक
हमको वो हमारा ही सामान बेचते हैं

हम से ही ठग के खाना आँखें हमे दिखाना
वल्लाह इस अदा पर हम जान बेचते हैं

चूना लगा के उस को कत्थे से ढक दिया है
हम शेर कह रहे हैं या पान बेचते हैं

ऐ पेट तुमसे बढ के बेशर्म हैं ये नेता
अपने वतन की आन बाण शान बेचते हैं