Wednesday, July 14, 2010

बात बस इतनी सी थी

बात बस इतनी सी थी कि
चप्पल बगल में दाबे
आधी रात को
हम अपने ही घर में
घुसने की कोशिश में थे|
दरवाज़े में सोये
एक आवारा कुत्ते की
पूंछ पर हमारा पैर
धीरे से पड़ गया|
पूंछ पर गुदगुदी हुई
और बेचारे कुत्ते की हंसी निकल गयी|
उधर कुत्ते की पूँछ को
सांप समझ कर हम घबराए
जोर से चिल्लाये|
कुत्ता लालू स्टाइल में बोला
"अब इन का कौन समझाए" |
हम सर पर पैर रख कर भागे
कुत्ता भी
हमें वस्तुस्थिति से अवगत करवाने की
धुन  में हमारे पीछे भागा |
हम चुपचाप आगे भाग रहे थे
और बह रुको-रुको कहते मनारे पीछे|
मोहल्ले के कुत्ते उसकी मदद करने आ गए
हम इतने बड़े कुक्कुर समुदाय को देखकर घबरा गए|
पूरे मोहल्ले का चक्कर लगाकर
जैसे ही हम अपने घर के आगे आये
जोर से जय बजरंग बलि चिल्लाये और
एक ही छलांग में अपने से भी ऊंची दीवार फांद गए
अन्दर पहुंचकर हमें अपनी ताकत पर हैरानी हुई
हम अपने आपको सुपर हीरो दिखाए दे रहे थे
कुत्ते बाहर से हमें इस कारनामे पर बधाई दे रहे थे
तभी हमारे ऊपर कहीं से एक मोटा कम्बल आन पड़ा
कम्पल के बाहर से किसी ने एक जोरदार घूँसा जड़ा
हम पहचान गए
ये हमारी धर्मपत्नी थी
लेकिन वोह हमें नहीं पहचान पाई
जोर-जोर से चोर चोर चिल्लाई
पडोसी पल भर में जाने कहाँ से आ गयी
और कम्बल में लिपटे  मुझ मासूम पर
न जाने कितने लात घूंसे बरसा गए
मार मार के मेरा कीमा बना दिया
और बात बस इतनी थी  कि
हमारे पैर ने कुत्ते की पूँछ को गुदगुदा दिया 
 
पेट
 

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