Sunday, March 7, 2010

है अज़ल ही से जहां में हुकुमरानी पेट की

ग़ज़ल

याद आयेगी तुम्हे इक दिन कहानी पेट की
सिर धुनोगे तुम की क्यों मैंने न मानी पेट की

साथ इक दिन छोड़ देंगे जब तुम्हारे हाथ पैर
तब बहुत याद आएगी तुमको जवानी पेट की

जिस जुबां से रात दिन देते हो गाली पेट को
उस जुबां को काट लेगी बेज़ुबानी पेट की

हाथ पैरों को जुबां को सिर को सीने को जनाब
पेट ज़िंदा रख रहा है मेहरबानी पेट की

जो भी कुछ आंखों को दिखता है वो सब हो पेट में
पूरी होती ही नही हसरत पुरानी पेट की

कष्ट ही पाया है जिसने दिल दुखाया पेट का
मौज उसने की है जिसने बात मानी पेट की

पेट ही से चल रहा है वक्त का सारा निजाम
है अज़ल ही से जहां में हुकुमरानी पेट की

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